आईएसओ ९००० श्रृंख्ला के मानक ८ गुणवत्ता प्रबंध सिद्धांतों पर आधारित हैं.
सिद्धांत १ - ग्राहक केंद्रित प्रबंध व्यवस्था
कम्पनियां अपने ग्राहकों पर निर्भर करती हैं. ग्राहक हैं तो कंपनी है, ग्राहक नहीं तो कम्पनी नहीं. कम्पनियों को अपने ग्राहकों की वर्तमान और भविष्य की जरूरतों और अपेक्षाओं को अच्छी तरह समझ कर न सिर्फ़ पूरा करना चाहिए, बल्कि यह कोशिश भी करनी चाहिए कि ग्राहकों को उनकी अपेक्षाओं से ज्यादा संतुष्टि प्रदान की जाय.
मुख्य फायदे:
१. तुरत कार्यवाही करके बाजार में उपलब्ध अवसरों का फायदा उठाना जिस से कंपनी की आमदनी और बाजार में हिस्सेदारी पढ़े.
२. कंपनी के संसाधनों का और अधिक प्रभावशाली प्रयोग करके ग्राहक संतुष्टि में लगातार बढ़ोतरी करना.
३. ऐसे बफादार ग्राहक बनाना जो कंपनी को लगातार आर्डर देते रहें.
इस सिद्धांत को प्रयोग करने से निम्नांकित अवसर उपलब्ध होते हैं:
१. ग्राहकों की जरूरतों और अपेक्षाओं पर अनुसंधान करना और उन्हें अच्छी तरह समझ सकना.
२. ग्राहकों की जरुरतों और अपेक्षाओं से सम्बंधित उद्देश्य तय कर सकना.
३. ग्राहकों की जरुरतों और अपेक्षाओं को कम्पनी में हर स्तर पर और हर व्यक्ति तक पहुँचा सकना.
४. ग्राहक संतुष्टि को नापना और उस पर आवश्यक कार्यवाही कर सकना.
५. ग्राहकों से संबंधों का व्यबस्थित तरीके से प्रबंधन कर सकना.
६. ग्राहकों और कम्पनी के दूसरी इंट्रेस्टेड पार्टीज (कम्पनी के मालिक, कर्मचारी, वित्तीय संस्थायें, स्थानीय कम्युनिटीस और सोसाइटी) उचित संतुलन बनाय्र रख सकना.
इस सिद्धांत के अंग्रेजी संस्करण के लिए क्लिक करें
मेरा अनुभव - यह अत्यन्त निराशाजनक है कि अधिकाँश कम्पनियां ग्राहकों की बिल्कुल चिंता नहीं करती. ग्राहकों की शिकायतों को या तो पंजीकृत ही नहीं किया जाता या टालने की कोशिश की जाती है. कम्पनी और ग्राहक के बीच में काल-सेंटर खड़ा कर दिया जाता है. ग्राहक इतना परेशान हो जाता है कि शिकायत ही भूल जाता है. कानून हैं, आचार संहिता हैं, आईएसओ मानक हैं, पर जब तक इच्छा न हो सब बेकार है. कम्पनियां आईएसओ ९००१ के पालन करने का वचन देती हैं पर पहले सिद्धांत का पालन ही नहीं करतीं. जो कम्पनियां ग्राहकों की चिंता करती हैं उन कम्पनियों में मैंने अभूतपूर्व सुधार देखा है, बिजनेस कुछ ही समय में कई गुना होते देखा है.
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